एक गांव
में बारात जीमने बैठी। उस समय स्त्रियां समधियों को गालियां गाती हैं, पर गालियां न गाई जाती देख
नागरिक सुधारक बाराती को बड़ा हर्ष हुआ। वह गांव के एक वृद्ध से कह बैठा, 'बड़ी खुशी की बात है कि आपके यहां
इतनी तरक्की हो गई है।'
बुड्ढ़ा
बोला- 'हां साहब, तरक्की हो रही है। पहले गलियों
में कहा जाता था.. फलाने की फलानी के साथ और अमुक की अमुक के साथ..। लोग-लुगाई
सुनते थे, हंस देते
थे। अब घर-घर में वे ही बातें सच्ची हो रही हैं। अब गालियां गाई जाती हैं तो चोरों
की दाढ़ी में तिनके निकलते हैं। तभी तो आंदोलन होते हैं कि गालियां बंद करो, क्योंकि वे चुभती हैं।'
No comments:
Post a Comment