चाँद, जरा धीरे उगना
गोरा-गोरा रूप मेरा
झलके न चाँदनी में
चाँद, जरा धीरे उगना |
भूल आई हँसिया मैं गाँव के सिवाने
चोरी-चोरी आई यहाँ उसी के बहाने
पिंजरे में डरा-डरा
प्रान का है सुगना
चाँद, जरा धीरे उगना ।
कभी है असाढ़ और कभी अगहन-सा
मेरा चितचोर है उसाँस की छुअन-सा
गहुँवन जैसे यह
साँझ का सरकना
चाँद, जरा धीरे उगना ।
जानी-सुनी आहट उठी है मेरे मन में
चुपके-से आया है ज़रूर कोई वन में
मुझको सिखा दे जरा
सारी रात जगना
चाँद, जरा धीरे उगना ।
- बुद्धिनाथ मिश्र !!
गोरा-गोरा रूप मेरा
झलके न चाँदनी में
चाँद, जरा धीरे उगना |
भूल आई हँसिया मैं गाँव के सिवाने
चोरी-चोरी आई यहाँ उसी के बहाने
पिंजरे में डरा-डरा
प्रान का है सुगना
चाँद, जरा धीरे उगना ।
कभी है असाढ़ और कभी अगहन-सा
मेरा चितचोर है उसाँस की छुअन-सा
गहुँवन जैसे यह
साँझ का सरकना
चाँद, जरा धीरे उगना ।
जानी-सुनी आहट उठी है मेरे मन में
चुपके-से आया है ज़रूर कोई वन में
मुझको सिखा दे जरा
सारी रात जगना
चाँद, जरा धीरे उगना ।
- बुद्धिनाथ मिश्र !!
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