कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद

दक्षिण भारत के हिन्दीतर क्षेत्र में विगत २ दशक से हिन्दी साहित्य के संरक्षण व संवर्धन में जुटी संस्था. विगत २२ वर्षों से निरन्तर मासिक गोष्ठियों का आयोजन. ३०० से अधिक मासिक गोष्ठियाँ संपन्न एवं क्रम निरन्तर जारी...
जय हिन्दी ! जय हिन्दुस्तान !!

Wednesday 6 July 2016

चाँद ज़रा धीरे उगना - बुद्धिनाथ मिश्र

चाँद, जरा धीरे उगना

गोरा-गोरा रूप मेरा
झलके न चाँदनी में
चाँद, जरा धीरे उगना |

भूल आई हँसिया मैं गाँव के सिवाने
चोरी-चोरी आई यहाँ उसी के बहाने
पिंजरे में डरा-डरा
प्रान का है सुगना

चाँद, जरा धीरे उगना ।

कभी है असाढ़ और कभी अगहन-सा
मेरा चितचोर है उसाँस की छुअन-सा
गहुँवन जैसे यह
साँझ का सरकना

चाँद, जरा धीरे उगना ।

जानी-सुनी आहट उठी है मेरे मन में
चुपके-से आया है ज़रूर कोई वन में
मुझको सिखा दे जरा
सारी रात जगना

चाँद, जरा धीरे उगना ।

- बुद्धिनाथ मिश्र !!

No comments:

Post a Comment