सकल बन फूल रही सरसों,
सकल बन फूल रही....
अम्बवा फूटे, टेसू फूले, कोयल बोले डार डार,
और गोरी करत शृंगार
मलनियां गढवा ले आई करसों
सकल बन फूल रही...
तरह तरह के फूल खिलाए,
ले गढवा हातन में आए ।
निजामुदीन के दरवाजे पर,
आवन कह गए आशिक रंग,
और बीत गए बरसों ।
सकल बन फूल रही सरसों ।
सकल बन फूल रही....
अम्बवा फूटे, टेसू फूले, कोयल बोले डार डार,
और गोरी करत शृंगार
मलनियां गढवा ले आई करसों
सकल बन फूल रही...
तरह तरह के फूल खिलाए,
ले गढवा हातन में आए ।
निजामुदीन के दरवाजे पर,
आवन कह गए आशिक रंग,
और बीत गए बरसों ।
सकल बन फूल रही सरसों ।
- अमीर ख़ुसरो !
(सकल बन - सघन बन)
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