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Wednesday 6 July 2016

जादूगर - अवधेश कुमार सिन्हा

वह जादूगर है
जो आदमी को बना देता है
कभी एक वोट
कभी शतरंज की बिसात का मोहरा
कभी किसी मंदिर की ईंट
तो कभी टोपी पहनाकर
बदल देता है चेहरा,
वह धर्म और ईश्वर का नाम ले
अपनी जादू की छड़ी घुमाकर
देखते ही देखते रंग बदल देता है झंडे का
कभी भगवा, कभी तिरंगा, तो कभी हरा;
वह वेश बदलकर
मदाड़ी भी बन जाता है
मंच पर डुगडुगी बजाता है
और लोग बजाने लगते हैं तालियां
उसके इशारे पर,
जादूगर ख़ुद को ग़ायब भी कर लेता है
महीनों, वर्षों तक
और जब वह अपने मौसम में आता है
पता नहीं कैसा सम्मोहन कर
आश्वासनों का दिखाता है इंद्रजाल
कि सारे दुःख, दर्द भूलकर
लोग करने लगते हैं उसकी जय-जयकार,
लेकिन, जादूगर ने सीखा नहीं है
बेवाई की तरह फटी धरती पर
मरते किसानों को ज़िंदा रख पाना,
युवाओं की धुंधलाती आँखों में
भविष्य की रोशनी पहुँचाना,
वह जानता नहीं महलों के नीचे झोपड़ियों में
दो वक्त चूल्हा जलाना,
काश, जादूगर ये सब भी सीख पाता
तो भारत दशकों बाद
सबके लिए जीने लायक तो हो जाता ।

- अवधेश कुमार सिन्हा !!

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