जानता हूँ,
सत्य का प्रकाश तेज है सूर्य की तरह
जिसमें लपटें भी हैं आग की
पर, संभव भी नहीं है जीवन उस सूर्य के
बिना
गहन अंधकार में भी
जिसका सत्य बना रहता है शाश्वत
समय के परे,
मैं
सूर्य तक चाहता हूँ पहुँचना
भस्म
हो जाने की हद तक
पर,
राख से जन्म लूँगा पुनः
सत्य
तक पहुँचने के लिये
जैसे
अपनी ही चिता से
जन्म
लेता है एक नया फ़ीनिक्स
और
भरता है उड़ान एक बार फिर
हीलियोस[1] तक
पहुँचने के लिये,
सत्य
की ख़ातिर
सलीब
पर लटका दिये जाने के बाद भी
जी
उठे थे यीशू ,
मृत्यु
का आलिंगन
जन्म
देता है नये जीवन को
बदलता
है केवल आत्मा का आवरण,
फ़ीनिक्स
की तरह ही
आग
में जलकर
पुनर्जीवन
का यह चक्र
चलता
रहेगा अनंत
सूर्य
के पास पहुँचने के लिये
सत्य
को पा जाने तक ।
- अवधेश कुमार सिन्हा
No comments:
Post a Comment