कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद

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Wednesday 6 July 2016

यादें जाने क्यों चली आती हैं - विनीता शर्मा

यादें जाने क्यों चली आती हैं
मैने तो उनको बुलाया नहीं था
कौन उदाता है नींद की चादर
मैने तो ख़ुद को सुलाया नहीं था

सपने भी देखे, मायूसी कम न हुयी
जिसका इंतज़ार था, आया नहीं था
बंद आँखों ने खुले सच को ही देखा
दरअसल वो मेरा था जिसे पाया नहीं था

थकी दहलीज़ ज़ख्मों सी रिसती दीवारें
न रिश्तों की धूप न प्यार की बौछारें
दरारों के आइने में झांकती तन्हाइयां
ये घर तो मेरा ही था पराया नहीं था

- विनीता शर्मा !!

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