यादें जाने क्यों चली आती हैं
मैने तो उनको बुलाया नहीं था
कौन उदाता है नींद की चादर
मैने तो ख़ुद को सुलाया नहीं था
सपने भी देखे, मायूसी कम न हुयी
जिसका इंतज़ार था, आया नहीं था
बंद आँखों ने खुले सच को ही देखा
दरअसल वो मेरा था जिसे पाया नहीं था
थकी दहलीज़ ज़ख्मों सी रिसती दीवारें
न रिश्तों की धूप न प्यार की बौछारें
दरारों के आइने में झांकती तन्हाइयां
ये घर तो मेरा ही था पराया नहीं था
- विनीता शर्मा !!
मैने तो उनको बुलाया नहीं था
कौन उदाता है नींद की चादर
मैने तो ख़ुद को सुलाया नहीं था
सपने भी देखे, मायूसी कम न हुयी
जिसका इंतज़ार था, आया नहीं था
बंद आँखों ने खुले सच को ही देखा
दरअसल वो मेरा था जिसे पाया नहीं था
थकी दहलीज़ ज़ख्मों सी रिसती दीवारें
न रिश्तों की धूप न प्यार की बौछारें
दरारों के आइने में झांकती तन्हाइयां
ये घर तो मेरा ही था पराया नहीं था
- विनीता शर्मा !!
No comments:
Post a Comment