कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद

दक्षिण भारत के हिन्दीतर क्षेत्र में विगत २ दशक से हिन्दी साहित्य के संरक्षण व संवर्धन में जुटी संस्था. विगत २२ वर्षों से निरन्तर मासिक गोष्ठियों का आयोजन. ३०० से अधिक मासिक गोष्ठियाँ संपन्न एवं क्रम निरन्तर जारी...
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Tuesday 5 July 2016

धूल फाँकती धरोहरें - आशीष नैथानी

कुठारों पर लटकते ताले
गौशाला के टूटे हुए दरवाजों पर
ज़ंग लगी साँकलें
चौक में गड़े मवेशियों के खूँटे
उदास पत्थर की ओखली
जिसमें कूटा जाता था जीवन का चारा

बुजुर्गों के स्वेद से महकती बड़ी समतल पठालें
पठालों को सँभाले लकड़ी के खम्बे
खम्बों पर बनी नक्काशियाँ
पूर्वजों के कलाप्रेमी होने का सुबूतभर

नारंगी अखरोट के घने वृक्ष
जो अब समयानुसार
फूलते हैं
फलते हैं
और झड़ जाते हैं

इस मरघट के सन्नाटे से पहले
यहाँ बच्चों की किलकारियाँ थी
गुड़गुड़ाहट थी हुक्के की
मंत्रोच्चार
ढोल दमाऊ मशकबाजे की धुनें थी
गाय-बकरी की आवाज़ें
गौंत-गोबर की महक थी

सवाल यह कि
क्या हम वाकई छोड़कर ये धरोहर
एक 'टू बी. एच. के.' में शिफ्ट हो चुके हैं ?

- आशीष नैथानी !!

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