कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद

दक्षिण भारत के हिन्दीतर क्षेत्र में विगत २ दशक से हिन्दी साहित्य के संरक्षण व संवर्धन में जुटी संस्था. विगत २२ वर्षों से निरन्तर मासिक गोष्ठियों का आयोजन. ३०० से अधिक मासिक गोष्ठियाँ संपन्न एवं क्रम निरन्तर जारी...
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Wednesday 20 July 2016

कादम्बिनी क्लब में पं० चंद्रधर शर्मा गुलेरी पर गोष्ठी संपन्न


कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वाधान में रविवार दि० 17 जुलाई को हिंदी प्रचार सभा परिसर में जाने माने साहित्यकार पं. चंद्रधर शर्मा गुलेरी को समर्पित मासिक गोष्ठी का सफल आयोजन हुआ.



क्लब अध्यक्षा डा० अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मुथा ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में आगे बताया कि इस अवसर पर प्रो० सुरेश (अंग्रेजी विभाग उ० वि० वि०) ने गोष्ठी की अध्यक्षता की. अतिथि रूप में श्रुतिकांत – विभाजी भारती (मिलिंद प्रकाशन), देवीदास घोड़के (कहानीकार) एवं डा० अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्षा) मंचासीन हुए. डा० रमा द्विवेदी ने महाकवि निराला रचित सरस्वती वंदना प्रस्तुत की. डा० मिश्र ने स्वागत भाषण में कहा कि कादम्बिनी क्लब शीघ्र ही रजत जयंती की ओर अग्रसर हो रहा है जिसका प्रमुख श्रेय सदस्यों की नियमित उपस्थिति एवं प्रोत्साहन को जाता है. इस माह 7 जुलाई, पं० चंद्रधर शर्माजी का जन्मदिन है और इस विशेष अवसर को ध्यान में रखते हुए प्रथम सत्र गुलेरीजी को समर्पित है. आगामी माह में गोस्वामी तुलसीदास पर गोष्ठी केन्द्रित रहेगी.

संगोष्ठी संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा ने कहा कि पं० गुलेरी पर सत्र आयोजन की बात मिडिया में आई तो लगभग 550 सकारात्मक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई. ‘उसने कहा था’ यह कहानी गुलेरीजी का पर्याय बन चुकी है. मात्र 39 वर्ष के जीवनकाल में उन्होंने जो और जितना लिखा, सराहनीय लिखा. वे ज्योतिष के भी जानकार थे. गुलेरी ने जब लेखन आरम्भ किया उस समय खड़ी बोली का विकास हो रहा था. किसी साहित्यकार की क्या ऐसी कहानी है जिसकी शताब्दी मनाई गई हो? गुलेरी की ‘उसने कहा था’ की 1915 – 2015 शताब्दी मनाई गई. यह कहानी कालजयी बनी रहेगी. 12 वर्ष का लड़का, मात्र 8 वर्ष की लड़की, उनकी आपस में मुलाक़ात, फिर 25 वर्ष का लंबा अंतराल, इस प्रेम को कैसे परिभाषित किया जाय? यह कहकर सिन्हाजी ने अपनी बात को विराम दिया.

सुनीता लुल्ला ने कहा कि पाठ्यक्रम में जब मैंने इस कहानी को पढ़ा था तब कथावस्तु, कथोपकहन, भाषा शैली आदि कहानी तत्वों का अभ्यास करते हुए कहानी की समीक्षा होती थी. प्रस्तुत कहानी में उर्दू, पंजाबी शब्दों का प्रयोग नजर आता है. संवेदना की उथल-पुथल को सुन्दरता से प्रस्तुत किया गया है. डा० मदनदेवी पोकरणा ने कहा कि गुलेरीजी की यह कहानी एम० ए० के पाठ्यक्रम में हुआ करती थी. आंचलिक वातावरण, भावनाओं की कशमकश, कुछ खामोश लम्हे बहुत सुन्दरता से चित्रित हुए हैं. नायक का मूड ऑफ़ विशेष रूप से कुशलता से चित्रित हुआ है.

प्रवीण प्रणव ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जब इस साहित्यकार पर समुचित सामग्री खोजने का प्रयास किया तो किसी एक जगह यह नहीं मिल पाया. कई जगह प्रयास के पश्चात कुछ महत्वपूर्ण जानकारी गुलेरीजी के सन्दर्भ में मिल पाई है. मात्र तीन कहानी, लघुकथाएँ, निबंध लिखकर उन्होंने हिंदी साहित्य जगत में अपनी पहचान बनाई. विनोद और व्यंग के सहारे देश के प्रति चिंता को बहुत कुशलता-खूबसूरती से पाठकों के सामने रखा है. गुलेरी की लघुकथा ‘पाठशाला’ का प्रवीण ने इस अवसर पर वाचन किया था गुलेरीजी के लिखे कुछ व्यक्तब्यों का भी जिक्र किया.

लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसी क्या बात है ‘उसने कहा था’ में जो यह कहानी अमर हो गई. अपने परिवेश, इतिहास, संस्कृति को साथ ले कर चलना यही इस कहानी की सफलता जा राज है. जब सशक्त ताना-बाना बुना जाता है तब वह कहानी स्मरणीय-पठनीय बनती है. ‘कुड़माई हो गई?’ यह अबोध प्रश्न कहानी की उत्कंठा को आगे बढ़ता है. हिंदी साहित्य में युद्ध के दृश्य कम दिखाई पड़ते हैं. बोर्डर पर क्या हो रहा है लोग पढ़ते थे तभी साहित्य में लिखते थे. युद्धभूमि के चित्रण में कुछ कमजोर पक्षों पर भी लक्ष्मीनारायण ने अपनी बात रखी तथा यह कहानी उपन्यास से बढ़कर है कहकर अपनी बात को विराम दिया.

श्रुतिकांत ने कहा कि संपादक के नाते कभी कभी उन्ही अंशों की काट-छांट हो जाती है जो लेखक की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं. अपने स्कूली जीवन में गुलेरी को पढ़ा है और उनसे प्रभावित हुआ हूँ. बिभा भारती ने कहा कि आज गुलेरी के कई अनजान पहलुओं से परिचित हुई हूँ. देविदास घोड़के ने गुलेरी की कलम को प्रशंसनीय बताया.

डा० अहिल्या मिश्र ने कहा कि भारतीय साहित्य युद्धपरक सामग्री को नहीं लेता. गुलेरी के समय स्थितियां भयावह थीं. पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कहा था ‘कम लिखो, अच्छा लिखो, अमर बन जाओ’, इसी का अनुकरण गुलेरी ने किया है. गुलेरी का जन्म 7 जुलाई 1887 को हुआ और मृत्यु 12 सितम्बर 1922 में हुई. मार्मिकता और गहनता उनके लेखन की बड़ी विशेषता थी. डा० मिश्र ने उनके निबंधों का भी जिक्र किया.

अध्यक्षीय टिप्पणी में प्रो० सुरेश ने कहा कि मेरी दृष्टि में गुलेरी प्रेमचंद से भी एक कदम आगे हैं. कितनी किताबें लिखी और कितने पन्नों की लिखी यह महत्वपूर्ण नहीं है, मायने यह रखता है कि कथ्य कितना सशक्त है. कहानी का शीर्षक ही अपने आप में प्रश्न भी है और उत्तर भी और यही इस कहानी की खूबसूरती भी है. फेमिनीजम और प्लूटोनिक लव का सशक्त चित्रण ‘उसने कहा था’ में दिखाई देता है.

प्रवीण प्रणव ने प्रथम सत्र का आभार व्यक्त किया.

दूसरे सत्र में नरेंद्र राय की अध्यक्षता में कविगोष्ठी का आयोजन हुआ. अवनीश दुबे, दयालचंद अग्रवाल, डा० मिश्र मंचासीन हुए. कविगोष्ठी में विभा भारती, रांगेय राघव, भावना पुरोहित, पवित्रा अग्रवाल, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, शशि राय, सूरज प्रसाद सोनी, सुनीता लुल्ला, श्रीपूनम जोधपुरी, सौम्या दुबे, सत्यनारायण काकड़ा, भंवरलाल उपाध्याय, कुंजबिहारी गुप्ता, डा० रमा द्विवेदी, मंगला अभ्यंकर, लीला बजाज, अवधेश कुमार सिन्हा, प्रवीण प्रणव, डा० अहिल्या मिश्र, शिवकुमार तिवारी कोहिर, देविदास घोड़के, अवनीश दुबे,मीना मुथा ने रचनाएं सुनाई. नरेन्द्र राय ने अध्यक्षीय काब्यपाठ किया. मल्लिकार्जुन, जुगल बंग जुगल, नमिता दुबे, मधुकर मिश्र और भूपेंद्र मिश्र उपस्थित रहे. मीना मुथा ने कार्यक्रम का संचालन किया.

                                                


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