कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद

दक्षिण भारत के हिन्दीतर क्षेत्र में विगत २ दशक से हिन्दी साहित्य के संरक्षण व संवर्धन में जुटी संस्था. विगत २२ वर्षों से निरन्तर मासिक गोष्ठियों का आयोजन. ३०० से अधिक मासिक गोष्ठियाँ संपन्न एवं क्रम निरन्तर जारी...
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Tuesday 17 January 2017

वरिष्ठ साहित्यकार महाश्वेता देवी को समर्पित कादम्बिनी की गोष्ठी संपन्न



कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार दिनांक 15 जनवरी को हिंदी प्रचार सभा परिसर में क्लब की मासिक गोष्ठी का आयोजन डॉक्टर मदन देवी पोकरणा की अध्यक्षता में हुआ.



क्लब अध्यक्षा डा० अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि इस अवसर पर प्रथम सत्र में डा० गीता जांगिड़ (मुख्य अतिथि) और डा० अहिल्या मिश्र मंचासीन हुए.  डा० रमा द्विवेदी ने निराला रचित सरस्वती वंदना प्रस्तुत की.  डा० मिश्र ने क्लब की संक्षिप्त जानकारी देते हुए उपस्थित सभा को नववर्ष एवं मकर संक्रांति की शुभकामनाएं दी. संगोष्ठी संयोजक एवं मंत्री प्रवीण प्रणव ने वरिष्ठ साहित्यकार महाश्वेता देवी के संदर्भ में कहा कि 14 जनवरी 1926 को इस लेखिका का जन्म हुआ. क्लब अपनी पहचान विस्तृत दायरे तक पहुंचाएं इस पर विचार करते हुए प्रतिमाह विभिन्न साहित्यकारों के रचना संसार पर प्रथम सत्र में विचार रखे जाते हैं.

सुषमा पांडे ने महाश्वेतादेवी पर अपनी बात रखते हुए कहा कि नटखट, शरारती महाश्वेतादेवी ने 13 वर्ष की आयु में ही पारिवारिक जिम्मेदारी उठाते हुए अपने आसपास की जमीनी हकीकत को देखा, महसूस किया और अपने लेखन में उतारा. आदिवासी, दलित, शोषित, पीड़ित नारी, समाज में किसानों की दुर्दशा आदि को बखूबी उन्होंने अपने साहित्य में चित्रित किया. वह कई सम्मानों से पुरस्कृत हुईं.  उनका अपना निजी जीवन भी संघर्षपूर्ण रहा फिर भी बुंदेलखंड की यात्रा करते हुए दुर्गम गांव में जा-जाकर उन्होंने सच्चाई को देखा, जाना, परखा. वे विद्रोही स्वभाव की महिला थी. 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन उनके दिल को छू गया. सुषमा ने उनके कई संग्रहों का जिक्र करते हुए बताया कि मूलतः बांग्ला की यह रचनाकार अन्य भाषाओं में उनके साहित्य के अनुदित होने के भी लिए जानी जाती हैं. अवधेश कुमार सिन्हा ने कहा कि करीब 250 पुस्तकें उन्होंने लिखी हैं, ‘हजार चौरासी की मां’ महज 4 दिनों में यह उपन्यास उन्होंने लिख डाला. लेखन से पहले विचार मंथन, तथ्यों को इकट्ठा करना, दिमाग में खाका  बनाती और फिर उसे विस्तारित करती थी. उनके लेखन में फैन्टेसी का स्थान नहीं था. वे कहती हैं इस हवा में शब्द ही शब्द बिखरे हैं इन्हें मैं सुनती हूं. उनके लेखन की यह खूबी रही है कि पात्र और कहानीकार एक हो जाते हैं. महाश्वेता का आग्रह रहा है कि सपने देखने का पहला मौलिक अधिकार होना चाहिए. लक्ष्मी नारायण अग्रवाल ने इस संदर्भ में कहा कि महाश्वेता देवी की रचनाएं इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं हैं. उस कालखंड में बंगाल में अकाल मृत्यु, शोषण, गरीबी, आंदोलन आदि के कारण स्थितियां गंभीर हो रही थी. उन्होंने इतिहास पर आधारित लेखन किया. बंगाल की धरती विद्रोही रही है, यह क्रांतिकारियों की भूमि रही है. उनके लेखन में मूल परिवर्तन विवाह के बाद आया. उन्होंने वामपंथी लेखकों को पढ़ा और साथ ही सावरकर को भी पढ़ा. इस महिला साहित्यकार का साहित्य जगत में अनमोल योगदान रहा है. प्रो० रोहिताश्व ने भी महाश्वेता देवी पर अपने विचार रखे.



डॉक्टर मिश्र ने कहा कि महाश्वेता आंदोलन को जीती थी, जिया-भोगा सच लिखती थी. आंध्र प्रदेश के आंदोलनों की जानकारी परिचितों से लेती थी. प्रत्येक आदिवासी को रोटी, शिक्षा, वस्त्र मिले यह उनका सपना था और इस सपने के प्रति वह समर्पित थी. जो परिस्थितियाँ उस समय थी, आज भी वही स्थिति बनी हुई है. कहने को तो हम 21वीं शताब्दी की ओर बढ़ रहे हैं, परंतु दूर-सुदूर क्षेत्रों में त्रासद दुख, अभाव जस का तस है. महाश्वेता ने दर्शन को आम आदमी के सामने रखा. डा० गीता ने संस्था की गतिविधियों को जानकर हर्ष व्यक्त किया. डा० मदन देवी ने कहा कि उनका ‘जकड़न’ उपन्यास अवश्य पढ़ें. प्रवीण प्रणव ने प्रथम सत्र का आभार व्यक्त किया.



तत्पश्चात डॉक्टर अहिल्या मित्र को हाल ही में चेन्नई में प्राप्त सम्मान ‘लाइफटाइम अचीवमेंट’ हेतु कादम्बिनी क्लब की ओर से अंगवस्त्र, पुष्पगुच्छ से सम्मानित किया गया. क्लब सदस्यों ने व्यक्तिगत तौर पर भी उन्हें पुष्पगुच्छ और माला भेंट की.


दूसरे सत्र में भंवरलाल उपाध्याय के सफल संचालन में कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ. वरिष्ठ दक्खिनी रचनाकार नरेंद्र राय ‘नरेन’  एवं हास्य व्यंग हायकु सम्राट वेणुगोपाल भट्टड मंचासीन हुए. कवि गोष्ठी में सौम्या दुबे, शशि राय, भावना पुरोहित, डॉ० रमा द्विवेदी, देवी दास जी, कुंज बिहारी गुप्ता, सरिता सुराणा, दर्शन सिंह, देवा प्रसाद मायला, सुनीता लुल्ला, श्रीपूनम जोधपुरी, सुषमा पाण्डेय,  विजय बाला स्याल,  संपतदेवी मुरारका, पवित्रा अग्रवाल, डा० सीता मिश्र, ज्योति नारायण, जुगल बंग ‘जुगल’, मिलन श्रीवास्तव, नरेंद्र राय, वेणुगोपाल भट्टड, दिनेश अग्रवाल, सुरेश जैन, सुषमा वैद्य, उमा सूरज प्रसाद सोनी, डा० गीता जांगिड़, प्रवीण प्रणव, शिवकुमार तिवारी कोहिर, डा० अहिल्या मिश्र, मीना मूथा ने भाग लिया. श्रेया दुबे, सुनील गौड, मधुकर भूपेंद्र मिश्र, निर्मल प्रीत वैद्य, दयाल चंद्र अग्रवाल आदि की भी उपस्थिति रही. डा० रमा ने सदस्यों को उनके जन्म-विवाह दिन की बधाई दी. मीना मूथा ने प्रथम सत्र में संचालन सहयोग दिया. देवा प्रसाद मायला के आभार व सदस्यों द्वारा राष्ट्र गीत  के साथ गोष्ठी का समापन हुआ.




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