कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद

दक्षिण भारत के हिन्दीतर क्षेत्र में विगत २ दशक से हिन्दी साहित्य के संरक्षण व संवर्धन में जुटी संस्था. विगत २२ वर्षों से निरन्तर मासिक गोष्ठियों का आयोजन. ३०० से अधिक मासिक गोष्ठियाँ संपन्न एवं क्रम निरन्तर जारी...
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Wednesday 21 December 2016

कादम्बिनी क्लब की संगोष्ठी एवं पुस्तक लोकार्पण आयोजित


कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार दि० 18 दिसम्बर मध्यान्ह 12 बजे से राजा कृष्ण देव राय सभागार में क्लब की 293वी मासिक गोष्ठी के अंतर्गत स्व० अदम गोंडवी (सुप्रसिद्ध कवि-गज़लकार) की पुण्यतिथि पर चर्चा सत्र एवं साहित्यकार सुनंदा जमदग्नी कृत उपन्यास ‘स्वयंसिद्धा’ का लोकार्पण समारोह डा० सी० वसंता की अध्यक्षता में संपन्न हुआ.


प्रेस विज्ञप्ति में डा० अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्षा एवं संयोजिका)  एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने बताया कि इस अवसर पर रमेश अग्रवाल (समाजसेवी) मुख्य अतिथि, सुरेश जैन (साहित्यकार कवि) सम्माननीय अतिथि, डा० रमा द्विवेदी (पुस्तक परिचय प्रस्तोता), लेखिका सुनंदा जमदग्नी, डा० अहिल्या मिश्र मंचासीन हुए. शुभ्रा महन्तो द्वारा सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना से सत्र का आरम्भ हुआ. मंचासीन महानुभावों के करकमलों से दीप प्रज्वलन किया गया. डा० मिश्र ने स्वागत भाषण में कहा कि संस्था की नियमित गोष्ठी में सदस्यों की नियमित उपस्थिति ही हमारी प्रेरणा है. नवांकुरों के लिए मंच प्रदान करना एवं साहित्यकारों से नई पीढ़ी को परिचित कराने के लिए संस्था संकल्पित है.


संगोष्ठी संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा ने अदम गोंडवी एवं उनके साहित्य पर अपनी बात रखते हुए कहा कि अदम गोंडवी का मूल नाम रामनाथ सिंह था, वे उ० प्र० के गोंडा जिले के आटा गाँव के निवासी थे. अदम का जन्म 22 अक्तूबर 1947 को ठाकुर किसान परिवार में हुआ तथा 18 दिसम्बर 2011 को उनकी जीवनयात्रा में पूर्ण विराम आ गया. स्कूली शिक्षा अधिक न होते हुआ भी जीवन के अनुभवों को सीधे सच्चे शब्दों में व्यक्त करने की अद्भुत योग्यता वो रखते थे. उनके कथन में विद्रोह, आक्रामकता और व्यंग प्रमुख रहा. “जो उलझ कर रह गई है फाइलों के जाल में, गाँव तक वो रौशनी आएगी कितने साल में”, “मानवता का दर्द लिखेंगे, माटी की बू-बास लिखेंगे, हम अपने इस कालखंड का, एक नया इतिहास लिखेंगे”. इन जैसी कई अनेक रचनाओं में उन्होंने वंचित और शोषित ग्रामीणों की पीड़ा को आवाज़ दी.


मंत्री प्रवीण प्रणव ने अदमजी के सन्दर्भ में कहा कि उन्हें छन्द या बहर की जानकारी नहीं थी, पुस्तकालय से मांग कर उन्होंने पुस्तकें पढ़ी और आस पास के परिवेश ने उन्हें लिखना सिखाया. आरंभ में कुछ कविताएँ लिखने के बाद उन्होंने ग़ज़ल को अपनी लेखन शैली के लिए चुना. “चोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करें, चूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे शाम को” ऐसी रचना गरीबों के प्रति उनके दर्द को प्रदर्शित करती है. उनकी रचनाओं में असहमति का स्वर सबसे प्रमुख है. जहाँ कहीं भी उन्हें वंचितों के खिलाफ कुछ लगा उन्होंने आवाज़ उठाई. उनके ही शब्दों में “’इसी असहमति को स्वर देने के लिए तो मैं मंच पर आया, अन्यथा स्वान्तः सुखाय ही क्यों न रह जाता ?


डा० अहिल्या मिश्र में अपने वक्तव्य में कहा कि स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते अदम ने हमेशा ज़मीनी हालातों का चित्रण अपनी ग़ज़लों में किया जो आम आदमी के दिल को छू जाता है. सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखते हुए वे कहते हैं “हिन्दू या मुस्लिम के एहसासात को मत छेड़िए,  अपनी कुर्सी के लिए ज़ज्बात को मत छेड़िए.” आज यह चर्चा सत्र सार्थक श्रद्धांजलि है अदम गोंडवी को कादम्बिनी क्लब हैदराबाद की ओर से.

तत्पश्चात मंचासीन अतिथियों का संयोजिका सुनंदा जमदग्नी व परिवार की ओर से सम्मान किया गया. इसी कड़ी में क्लब की ओर से तथा सी० वसंता की ओर से सुनन्दाजी का सम्मान किया गया. व्यवस्था में सरिता सुराणा, मंगला अभ्यंकर ने सहयोग दिया. सुनंदा जमदग्नी कृत उपन्यास ‘स्वयंसिद्धा’ का परिचय देते हुए डा० रमा द्विवेदी ने कहा कि इस किताब को लघु उपन्यास कह सकते हैं. बाल विवाह एवं बाल विधवा इस ज्वलंत प्रश्न के इर्द गिर्द कहानी का ताना बाना बुना गया है. लड़की के विधवा होते ही उसका मुंडन कर दिया जाता है, सफ़ेद साड़ी उसकी ज़िंदगी बन जाती है, खाना भी एक वक्त का दिया जाता है और वह भी रूखा सूखा. लेखिका ने हिन्दू, मुस्लिम, इसाई धर्म का पारिवारिक परिवेश चित्रित किया है जो दर्शाता है कि मनुष्य की संवेदना है तो वह किसी की भी मदद कर सकता है. कहानी चलचित्र की भांति है. स्त्री का जीवन अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है, ऐसे हालात में बाल विधवा का मुंडन कर उसे विद्रूप दशा में रहने के लिए बाध्य कर दिया जाता है. समाज को ऐसी सोच से मुक्ति पानी होगी यह संकल्प नायिका मालती लेती है. लेखिका ने स्त्री प्रश्नों पर चिंतन किया है, उन्हें साधुवाद. डा० अहिल्या मिश्र ने कहा कि यह त्रासदी सदैव नारी के साथ बनी रही. जो स्त्री मातृत्व का भार वहन कर पूरे परिवार की गृह स्वामिनी बनती है उसके वैधव्य के लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है. पुरुष प्रधान समाज, नियमों की आड़ में स्त्री की प्रगति और उत्थान को सहजता से स्वीकार नहीं करता. नारी आज भी प्रताड़ित हो रही है. सुनन्दाजी इसी तरह नारी समस्याओं पर चिंतन मंथन कर लेखन को आगे बढाएं यही शुभकामना है. सुरेश जैन, रमेश अग्रवाल ने भी उन्हें बधाई दी. रमेश अग्रवाल व मंचासीन अतिथियों के करकमलों से ‘स्वयंसिद्धा’ का लोकार्पण हुआ. डा० सी० वसंता ने पुस्तक समीक्षा में कहा कि ‘स्वयंसिद्धा’ में क्रांतिपथ पर चलने वाले पात्रों का सृजन हुआ है. स्त्री केवल लता बन कर न रहे, वह पेड़ बने, कुप्रथाओं का समूल नष्ट करे, यही इस उपन्यास का सन्देश है. लेखिका सुनंदा जमदग्नी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि वाचनालय चलाते समय कई महिला पाठकों ने अपनी समस्याएँ मुझसे साझा की. भारतीय संस्कृति में नारी को सर्वोच्च स्थान दिया गया है पर हकीकत में नारी की दशा-दिशा कुछ और ही है. उसी पीड़ा को ‘स्वयंसिद्धा’ में आपके समक्ष रखा है. प्रथम सत्र का आभार सचिव देवाप्रसाद मायला ने व्यक्त किया एवं संचालन मीना मुथा ने किया.


दूसरे सत्र में भंवरलाल उपाध्याय के संचालन में कविगोष्ठी संपन्न हुई. लक्ष्मीकांत जोशी, के. एस. जैन, आर. जी. बरडिया, नीरज कुमार मंचासीन हुए. नोटबंदी, भ्रष्टाचार, नारी समस्याओं आदि विषयों पर शशि राय, सुषमा पाण्डेय, दर्शन सिंह, डा० सीता मिश्र, डा० रमा द्विवेदी, मंगला अभ्यंकर, सरिता सुराणा, जी. परमेश्वर, सुरेश जैन, सत्यनारायण काकड़ा, उमा सोनी, सूरजप्रसाद सोनी, शिवकुमार तिवारी कोहिर, प्रवीण प्रणव, मल्लिकार्जुन, सुनीता लुल्ला, सी. जयश्री, सुषमा वैद्य, जुगल बंग जुगल, के. एस. जैन आदि ने काव्य पाठ किया. नीरज कुमार ने दोनों सत्रों की सफलता पर हर्ष व्यक्त किया. मधुकर, भूपेन्द्र मिश्र, संतोष जमदग्नी, आनंद डी., डा० कुलकर्णी आदि की उपस्थिति रही. कार्यक्रम संयोजिका सुनंदा जमदग्नी ने सभी की उपस्थिति के प्रति आभार जताया. डा० मिश्र ने कहा कि अगले माह साहित्यकारों की श्रेणी में महाश्वेता जी पर चर्चा सत्र रहेगा. मीना मुथा के धन्यवाद ज्ञापन से गोष्ठी का समापन हुआ.                                          

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