कादम्बिनी क्लब
हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार दिनांक 18 सितंबर
को हिंदी प्रचार सभा परिसर में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को समर्पित गोष्ठी
का सफल आयोजन किया गया. क्लब अध्यक्षा डॉ० अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका
मीना मूथा ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि डॉक्टर ऋषभदेव शर्मा (पूर्व
अध्यक्ष उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारतीय हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद) ने
कार्यक्रम की अध्यक्षता की. मुख्य अतिथि डॉ० विद्या बिंदु सिन्हा (वरिष्ठ
साहित्यकार, पूर्व उप निदेशक, हिंदी संस्थान, लखनऊ), विशेष अतिथि किरण सिंह, डॉ० अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्षा व प्रधान
संयोजक) मंचासीन हुए. शुभ्रा महंतो ने निराला रचित सरस्वती वंदना प्रस्तुत की. डॉ०
मिश्र ने स्वागत भाषण व अतिथि परिचय में कहा कि संस्था अपनी रजत जयंती की ओर
अग्रसर हो रही है. हिंदी का प्रचार-प्रसार-सेवा व् नई पीढ़ी को मार्गदर्शन देते
हुए क्लब अपनी गतिविधियों में निरंतरता बनाए हुए है. डॉ० विद्या बिंदु जैसी विदुषी
का आज हमारे मंच पर होना हमारे लिए गौरव की बात है. डॉ० शर्मा ने सदैव संस्था के
लिए समय व बहुमूल्य मार्गदर्शन देकर हमारा मनोबल बढ़ाया है. किरण सिंह की उपस्थिति
भी हमारे लिए प्रेरक रही है.
संगोष्ठी के प्रथम
सत्र का संचालन करते हुए मंत्री, प्रवीण प्रणव ने कहा की क्लब के कार्यक्रमों की
रूपरेखा में कुछ परिवर्तन किए गए हैं और इसे सराहा भी गया है. इसी चरण में आज का
प्रयास है राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की रचनाओं पर साहित्यिक परिचर्चा.
संगोष्ठी संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा ने दिनकर जी की “उर्वशी” पर बात रखते हुए कहा कि
1961 में प्रकाशित यह काव्य नाटक है. केवल
कथानक को प्रस्तुत करना ही मेरा ध्येय नहीं है बल्कि दार्शनिक स्वरूप की व्याख्या
और लौकिक अलौकिक प्रेम संबंधों पर गहनता से हम बात करेंगे. मनुष्य चाहता है कि काम
भी मिले, अर्थ भी मिले और मोक्ष भी मिले. और इन दोनों के बीच वह झूलता रहता है. उर्वशी
और पुरुरवा की कहानी को संक्षिप्त में बताते हुए सिन्हा ने उसे एक उत्कृष्ट रचना
कहा. सुनीता लुल्ला ने कहा कि दिनकर जी ने पुरुष होकर भी स्त्री के अधिकारों के
लिए आवाज उठाई. “आदमी और चांद” कविता का पाठ सुनीताजी ने किया. 11 वर्षीय अक्षिति
(पल) मिश्र ने दिनकर जी के रश्मिरथी संग्रह से तृतीय सर्ग का कंठस्थ पाठ किया,
जिसे सभागार ने तालियों की गूंज से सराहा और इस प्रतिभा को सभी ने आशीष दिया. सरिता
सुराणा ने दिनकर जी की ओज कविता “झन झन झन झन झनन झनन” का पाठ किया. ज्योति नारायण
ने कहा कि दिनकर जी ने दीर्घ कविताएं भी लिखी, उनकी “बालिका से वधू” कविता चर्चित
रही है. राष्ट्रकवि वह नहीं होता जो राष्ट्र पर कविताएं लिखता है बल्कि वह होता है
जो देश के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है.
प्रवीण प्रणव ने
कहा कि किसी साहित्यकार के मूल्यांकन के लिए उसके द्वारा लिखे गए पत्र एक सशक्त
माध्यम हैं. पुस्तक या डायरी लिखते समय लेखक के मन में यह विचार होता है कि उसका
मूल्यांकन इन रचनाओं या डायरी को पढ़कर किया जाएगा. पत्र यह सोचकर नहीं लिखे जाते.
दिनकर जी ने 1000 से भी ऊपर पत्र लिखे हैं
जिन्हें पढ़कर उनके विविध आयामों का परिचय मिलता है. डॉ० अहिल्या मित्र ने दिनकर
जी के “संस्कृति के चार अध्याय” पर अपनी बात रखी. उन्होंने बताया कि इस राष्ट्रकवि
का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार प्रांत के मुंगेर जिले के
सिमरिया गांव में हुआ. उनका रचनाकाल 1927 से 1974 तक रहा. दिनकर जी के साहित्यावलोचन का फलक विस्तृत रहा है. विद्यापति के बाद 600
वर्षों के कालखंड के बाद दिनकर जी जैसा साहित्यकार भारत वर्ष को
मिला. ‘रेणुका’, ‘हुंकार’, ‘रसवंती’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’,
‘परशुराम की प्रतिज्ञा’, ‘हारे को हरिनाम’ और
‘उर्वशी’ दिनकर जी के काव्य संकलन हैं. विभिन्न आलोचकों के कोटेशंस भी उल्लेखित
किए गए. डॉ० विद्या बिंदु ने कहा कि आज के
बच्चे बिल्कुल ही साहित्य संस्कृति से जुड़ नहीं पा रहे हैं ऐसे में अक्षिति की
प्रस्तुति सराहनीय है. “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” हुंकार की इस रचना को
विद्या जी ने प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि सभी वक्ताओं का दिनकर जी के साहित्य
पर प्रयास सराहनीय रहा है. साहित्यकारों के पत्रों को सहेज कर रखने का कार्य भी अब
चल रहा है. डॉ० ऋषभदेव शर्मा ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि दिनकर जी प्रेम पर
लिखने के सबसे बड़े अधिकारी हैं. वह काव्य अनुवादक भी रहे हैं. जितनी विस्तृत
पीठिका कामायनी के पीछे है वही स्थिति उर्वशी में भी है. दिनकर जी ने आजादी से
पहले भी लिखा और आजादी के बाद भी लिखा. “आंसू से भीगे आंचल पर सब कुछ रखना होगा”, “पानी
पर चलो पानी का दाग न लगे” ऐसी पंक्तियों का उल्लेख करते हुए डा० शर्मा ने कहा कि
दिनकर जी और हरिवंश राय बच्चन की लोकप्रियता का कारण यह रहा है कि लंबे समय तक
हिंदी मंच और मन पर इन रचनाकारों ने राज किया. संगोष्ठी सत्र का संचालन प्रवीण
प्रणव ने किया.
इस अवसर पर डॉ०
विद्या जी का क्लब की ओर से सम्मान किया गया. उन्हें “पुष्पक” प्रति भेंट की गई.
डॉ० मिश्र को उनके जन्मदिन की बधाई दी गई.
डॉ० रमा ने क्लब सदस्यों को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी.
दूसरे सत्र में कवि
गोष्ठी संपन्न हुई. डॉ० शर्मा, डॉ० विद्या, डॉ० अहिल्या मिश्र मंचासीन हुए. भंवरलाल
उपाध्याय के सफल संचालन में भावना मयूर पुरोहित, संपत मुरारका, डॉ० रमा द्विवेदी,
डॉ० विद्या, कुंज बिहारी गुप्ता, अवधेश सिन्हा, सत्यनारायण काकड़ा, शिव प्रसाद तिवारी, जुगल बंग
जुगल, देवा प्रसाद मायला, सुनीता लुल्ला, रेणु अग्रवाल, शशि राय, मल्लिकार्जुन,
सुख मोहन अग्रवाल, उमेश चंद्र श्रीवास्तव, सरिता गर्ग, सरिता सुराणा, ज्योति
नारायण, सुषमा वैद्य, उमा सूरज प्रसाद सविता सोनी, प्रवीण प्रणव, सौम्या नमिता
दुबे, मिलन श्रीवास्तव, डॉ० अर्चना झा, डॉ० अहिल्या मिश्र, मीना मूथा ने काव्य पाठ
किया. डा० शर्मा ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया. कार्यक्रम का संचालन आभार मीना मूथा
ने किया. इस अवसर पर श्री प्रभाकर श्रोत्रीय (ज्ञानपीठ के निदेशक) को सभा में
श्रद्धांजलि दी गई. डॉ० आशा मिश्र, डॉ० मदन पोकरणा, अवनीश दुबे, अमिताभ सिंह, एल० रंजना, निर्मल वैद्य,
सुनील देव सिंह, मधुकर भूपेंद्र मिश्र की
उपस्थिति रही.
अच्छी रपट. बधाई/धन्यवाद.
ReplyDelete''आँसू से भीगे अंचल पर......'' पंक्ति कामायनी [जयशंकर प्रसाद] की है, इसे वक्तव्य में उर्वशी [दिनकर] की पंक्ति ''तब छिगुनी की शक्ति लगाकर उसे चला दे नारी'' के साथ स्त्री-विमर्श के संदर्भ में उदधृत किया गया था.