“कादम्बिनी क्लब” एवम “सांझ के साथी”
इन साहित्यिक संस्थाओं के सुंयुक्त तत्वाधान में रविवार दिनांक 19 जून को हिंदी
प्रचार सभा नामपल्ली में ‘रंगमंच एवं एकांकी” इस विषय पर चर्चा सत्र, काब्य प्रकाशन “पुष्पक -31” का
लोकार्पण तथा जबलपुर से पधारे विशेष अतिथि अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि
संदीप सपन का सम्मान एवं काब्य् गोष्ठी का
सफल आयोजन किया गया.
क्लब अध्यक्षा डा० अहिल्या मिश्र एवं
कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में आगे बताया कि इस
अवसर पर डा० करणसिंह उंटवाल ने कार्यक्रम के प्रथम सत्र की अध्यक्षता की. श्रीकांत
भारती, इलाहबाद (उ०प्र०) से पधारे डा० प्रदीप
चित्रांशी (पुष्पक लोकार्पण कर्ता),
अवधेश
कुमार सिन्हा (पुष्पक परिचय प्रस्तोता) एवं डा० अहिल्या मिश्र मंचासीन हुए. डा०
रमा द्विवेदी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की. मीना मूथा ने सभी का स्वागत करते हुए
क्लब का संक्षिप्त में परिचय एवं नई कार्यकारिणी की जानकारी दी. डा० मिश्र ने
स्वागत भाषण में कहा कि क्लब ने अपने 23 वे वर्ष की यात्रा शुरू की है और
राजतजयंती की ओर अग्रसर हो रहे हैं.
अवधेशजी ने पुष्पक-31 के परिचय में कहा
कि साहित्य की हर विधा का सुन्दर समिश्रण इस पुस्तिका में देखने को मिलता है.
कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल, कविताएँ, हायकु, संस्मरण, आलेख, विभिन्न रिपोर्ट,
छायाचित्र
के माध्यम से झलकियाँ ये सब मात्र 100 पृष्ठों में समेटा गया है. सम्पादकीय
निश्चित ही सशक्त बन पड़ा है, सम्पादकीय मंडल का प्रयास सराहनीय है.
पुस्तिका पठनीय-संग्रहणीय है. तत्पश्चात डा० चित्रांशी एवं मंचासीन अतिथियों के
करकमलों से पुष्पक-31 का तालियों की गूँज के साथ लोकार्पण हुआ.
“रंगमंच एवं एकांकी” विषय पर विचार
व्यक्त करते हुए मंगला अभ्यंकर ने कहा कि रेलवे के लिए कार्यसेवा में हिंदी को आगे
बढ़ाने और प्रचार प्रसार में नाटकों की अहम भूमिका रही. अहिन्दी कर्मचारियों से
अक्सर जुड़ना पड़ता था, तब इस प्रकार की एकांकियों का बहुत
उपयोग हुआ करता था. एकांकी कम समय में अपना संदेश प्रभावी ढंग से लोगों तक
पहुंचाती है. आज व्यस्तता की दौड़ में रंगमंच अपनी पहचान बनाए रखने में प्रयासरत
है. डा० मिश्र ने कहा कि मंगलाचरण से नाटक शुरू हुआ करता था. प्रकाश, ध्वनी, नेपथ्य की भूमिका अहम् होती थी. एकांकी में परदा गिराने की आवश्यकता
नहीं होती. कथ्य, तथ्य, अभिनेता में सामंजस्य नहीं नहीं हुआ तो एकांकी सफल नहीं होती. डा०
चित्रांशी ने कहा कि नाटक का अंत करुण हुआ करता था. अवधेशजी ने कहा कि आज युवा
वर्ग रंगमंच के क्षेत्र में समर्पित नहीं दिखाई देता. भारतीजी ने कहा कि वे
क्रिकेट क्षेत्र से जुड़े रहे,
बाद
में प्रकाशन क्षेत्र में पहल की है. डा० उंटवाल ने अध्यक्षीय बात में कहा कि पहले
मंगलाचरण होता था, अब नहीं होता है. रंगमंच का अगला रूप
फिल्मे हैं जहां रीटेक होते हैं. कुछ दृश्यों को मंचन में दिखाने से बचना चाहिए.
जिस प्रकार लघुकथा समय की मांग है,
उसी
प्रकार एकांकी भी बदलते समय में प्रसिद्ध हुई है. रंगमंच का आविष्कार साहित्य को
लोगों तक पहुँचाने के लिए हुआ है.
इस अवसर पर डा० चित्रांशी (इलाहाबाद)
एवं जी० परमेश्वर (अनुवादक) का संस्था की ओर से सम्मान किया गया. परमेश्वरजी को
‘क्रेतु’ तेलगु पुस्तक के हिंदी अनुवाद पर
केन्द्रीय हिंदी निदेशालय की ओर से 1 लाख की पुरस्कार राशी से सम्मानित किया गया
है.
द्वितीय सत्र में “सांझ के साथी” और
“कादम्बिनी क्लब” के संयुक्त तत्वाधान में संदीप सपन (जबलपुर) एवं सुरेशजी दर्पण
के आतिथ्य में सफल कविगोष्ठी संपन्न हुई. सपनजी एवं सुरेशजी ने मन को झकझोर
देनेवाली रचनाएं सुना कर खूब तालियाँ बटोरीं. वेणुगोपाल भट्टड़ ने अतिथियों का
परिचय दिया एवं बिशनलाल संघी ने संस्था का परिचय दिया. तत्पश्चात अतिथियों का
सम्मान संस्था द्वय की ओर से किया गया. सपनजी न कहा कि साहित्य ही राष्ट्र को
जिंदा रख सकता है. “इस धरा पर सब धरा का धरा रह जाएगा” गीत ने सबको मन्त्रमुग्ध कर
दिया.
कविगोष्ठी में विद्याप्रकाश कुरील, पुष्पा वर्मा, शशी राय, जी० परमेश्वर,
देवा
प्रसाद मायला, प्रवीण प्रणव, पवन जैन, रेणु अग्रवाल,
डा०
रमा द्विवेदी, सरिता सुराणा, कुंजबिहारी गुप्ता, दर्शन सिंह, डा० मदनदेवी पोकरणा, पुरुषोत्तम कडेल, सत्यनारायण काकड़ा, सीताराम माने, सूरजप्रसाद सोनी, चंद्रकरण खांडेकर, उमेशचंद श्रीवास्तव, डा० मोहन गुप्ता, सुषमा वैद, श्रीपूनम जोधपुरी, मंगला अभ्यंकर, डा० अहिल्या मिश्र, डा० सीता मिश्र, शिवकुमार तिवारी कोहिर, देवीदासजी , कुंजबिहारी गुप्ता, अवधेश कुमार सिन्हा, सुनीता लुल्ला, मीना मुथा, कैलाश भट्टड़, बिशनलाल संघी, ज्योति चित्रांशी आदि ने भाग लिया.
भूपेन्द्र मिश्र, मधुकर मिश्र, दयालचंद अग्रवाल, वी० वरलक्ष्मी ने उपस्थिति प्रदान की.
प्रथम सत्र का आभार सचिव देवप्रसाद मायला ने व्यक्त किया एवं द्वितीय सत्र का
धन्यवाद मंत्री प्रवीण प्रणव ने ज्ञापित किया. अतिथियों को पुष्पक प्रति भेंट की
गई. कविगोष्ठी का संचालन भंवरलाल उपाध्याय ने किया.
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